मानवीय गुणों के विकास से ही आत्मा का उत्थान होता है : ऋषभ सागर
बालोद। पूरा जीवन बीत जाता है पर जीवन को सार्थक कैसे बनाएं यह चिंतन नही आता।सोचें हम जो धर्म कर रहे है उसे धर्म कहेंगे।धर्म की निर्मलता हमारे अंदर से आनी चाहिए। मानवीय गुणों के विकास से ही आत्मा का उत्थान होता है और यही धर्म है।
महावीर भवन में जीवन दर्शन पर आधारित प्रवचन श्रृंखला पर व्याख्यान में संत ऋषभ सागर ने कहा कि जिस तरह जीवन के हर क्षेत्र में लक्ष्य प्राप्त करने के लिए योग्यता चाहिए उसी तरह धर्म करने के लिए भी पात्रता चाहिए। हमारीआसक्ति जड़ और चेतन के प्रति इतनी है कि हम इसे ही जीवन की प्राथमिकता मान लेते हैं।हमारा सारा प्रयास उन चीजों में अधिक होता है जो छूट जाने वाला है,जो साथ जाने वाला है उसके लिए कोई प्रयास नही होता। आत्मा के कल्याण का मार्ग बताने वाले कम मिलते हैं अकल्याण का मार्ग बताने वाले अधिक होते है।भगवान के बताए मार्ग पर चलने के लिए श्रद्धा और समर्पण चाहिए।सिर्फ मनुष्य गति ही ऐसी है जिसमे आत्मा,परमात्मा बन सकती है।प्रीति परमात्मा से करो तो मुक्ति, और जड़ से करो तो बंधन है।राग वाली वाली प्रीति अशांति का कारण बनता है।वीतराग वाली प्रीति राग,द्वेष,क्रोध मोह, लोभ,अहंकार जैसे भव बिगाड़ने वाली चीजों से दूर रखता है।जो परमात्मा से प्रेम करता है वो उसके बताये मार्ग का अनुसरण भी करता है तथा वह समस्त जीवों के प्रति प्रेम रखता है।नेमिनाथ भगवान के जन्म कल्याणक का पर्व एकासना व्रत रखकर मनाया गया।कल व्यख्यान के स्थान पर परमात्मा की अभषेक पूजा होगी।
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