नौकरशाही में लेटरल एंट्री वाली भर्ती का विज्ञापन रद्द, आरक्षण पर विवाद के बाद मोदी सरकार पीछे हटी


नई दिल्ली। देश की शीर्ष नौकरशाही में 45 पदों पर लेटरल एंट्री से भर्ती वाले विज्ञापन को मोदी सरकार ने रद्द कर दिया है। विपक्ष की ओर से इस भर्ती पर सवाल उठाए गए थे और इसे आरक्षण खत्म करने की कोशिश बताया था। इसके बाद ही मोदी सरकार ने यह फैसला लिया है। कार्मिक विभाग के मंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी की चेयरमैन प्रीति सुदन को पत्र लिखकर यह भर्ती रद्द करने को कहा है। इस पत्र में जितेंद्र सिंह ने कहा कि पीएम नरेंद्र का दृढ़ निश्चय है कि संविधान में दिए गए समानता के अधिकार के तहत ही लेटरल एंट्री वाली भर्ती भी होनी चाहिए। खासतौर पर देश में आरक्षण से कोई छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि पीएम मोदी का मानना है कि सार्वजनिक नौकरियों में सामाजिक न्याय सरकार के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता होनी चाहिए। इस आरक्षण का उद्देश्य इतिहास में हुए अन्याय का उन्मूलन और समाज में समावेश और समरसता को बढ़ावा देना है। केंद्रीय मंत्री ने अपने पत्र में यह भी कहा कि लेटरल एंट्री वाले पदों को विशेषज्ञता वाला माना जाता है। ये सिंगल काडर पोस्ट होती हैं, इसलिए अब तक इनमें आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं था। इसलिए इसकी समीक्षा किए जाने की जरूरत है और फिर सुधार किया जाए। इसलिए मैं यूपीएससी से कहूंगा कि वह 17 अगस्त को जारी लेटरल एंट्री वाले विज्ञापन को रद्द कर दे। ऐसा करना सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण के लिहाज से बेहतर होगा।

मंत्री बोले- लेटरल एंट्री का प्रस्ताव लाई तो यूपीए सरकार ही थी

केंद्रीय मंत्री ने अपने पत्र में विपक्ष पर निशाना भी साधा और कहा कि लेटरल एंट्री का कॉन्सेप्ट ही 2005 में यूपीए सरकार में आया था। जितेंद्र सिंह ने लिखा, ‘यह सभी जानते हैं कि सैद्धांतिक तौर पर 2005 में लेटरल एंट्री का प्रस्ताव आया था। तब वीरप्पा मोइली के नेतृत्व में एक प्रशासनिक सुधार आयोग बना था, जिसमें ऐसी सिफारिशें की गई थीं। इसके बाद 2013 में छठे वेतन आयोग की सिफारिशें भी इसी दिशा में थीं। हालांकि उससे पहले और बाद में भी लेटरल एंट्री के कई मामले सामने आए थे।’

सोनिया की सलाहकार परिषद पर भी उठाए सवाल

उन्होंने यूपीए सरकार के राष्ट्रीय सलाहकार परिषद में रखे गए लोगों का भी उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि 2014 से पहले लेटरल एंट्री के जरिए अपने पसंदीदा लोगों को रखा जाता था। वहीं हमारी सरकार ने इसे संस्थागत और पारदर्शी तरीके से करने का फैसला लिया है। गौरतलब है कि यूपीए सरकार में सलाहकार परिषद की मुखिया खुद सोनिया गांधी थीं और उसमें हर्ष मंदर, फराह नकवी जैसे कई लोग सदस्य के तौर पर शामिल थे।


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