भारत-चीन सीमा विवाद पर बनी सहमति, लेकिन चुनौतियां भी साथ; कितना भरोसेमंद ड्रैगन
नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर स्थिति सुधारने की दिशा में हालिया सहमति महत्वपूर्ण कदम है, खासकर गलवान घाटी संघर्ष के बाद से दोनों देशों के रिश्तों में आई खटास को देखते हुए। इस सहमति का स्वागत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस के कजान में BRICS बैठक के दौरान द्विपक्षीय वार्ता की।
हालांकि, चीन पर भरोसा करने में सावधानी बरतने की आवश्यकता है। पीएम मोदी ने अप्रैल 2024 में कहा था कि सीमाओं पर चल रही स्थिति का समाधान आवश्यक है, जबकि चीनी विदेश मंत्रालय ने इस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सीमा विवाद के बीच अन्य मुद्दों के समाधान की उम्मीद जताई। भारत और चीन के बीच गश्ती अधिकारों पर सहमति, विशेषकर डेपसांग मैदान और डेमचोक क्षेत्र में स्थिति में सुधार की उम्मीद जगाती है।
हालांकि, दोनों देशों के बीच ब्रीफिंग में अंतर स्पष्ट है। भारत ने यह कहना जारी रखा कि जब तक सीमा विवाद का समाधान नहीं होता तब तक चीन के साथ सामान्य व्यापार नहीं हो सकता। यह स्थिति दर्शाती है कि सीमा विवाद अभी भी द्विपक्षीय संबंधों में एक संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है।
सतर्कता जरूरी
पीएम मोदी और शी जिनपिंग की बैठक के बाद कुछ भिन्नताएं उभरकर सामने आईं। भारत की तरफ से की गई ब्रीफिंग में कहा गया कि पीएम ने 2020 में भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में उत्पन्न समस्याओं के पूर्ण समाधान के लिए हाल के समझौते का स्वागत किया।" वहीं, चीनी बयान में केवल इतना कहा गया कि दोनों नेताओं ने सीमा क्षेत्रों में संबंधित मुद्दों के समाधान पर महत्वपूर्ण प्रगति की।
समझौते की रूपरेखा
दोनों देशों ने डेपसांग मैदान और डेमचोक क्षेत्र में एक-दूसरे को गश्ती अधिकार बहाल करने पर सहमति व्यक्त की है। ये ऐसे क्षेत्र हैं जहां समस्याएं 2020 के चीनी आक्रमण से पहले की हैं। इसका मतलब है कि भारतीय सैनिक गश्ती बिंदु (PP) 10 से 13 तक डेपसांग मैदान में और डेमचोक के चार्डिंग नाले में गश्ती कर सकते हैं।
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