गौ आधारित कृषि ही हमारा आने वाला कल : पदम जैन
रायपुर। महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगीकरण संस्थान (एमगिरी) वर्धा के जैव प्रसंस्करण एवं जड़ी-बूटी विभाग द्वारा 17 से 18 दिसंबर को "पंचगव्य आधारित उत्पादों का विपणनः चुनौतियां, समाधान एवं अवसर’ विषय पर राष्ट्रीय परामर्श कार्यशाला और विचार-मंथन सत्र आयोजित किया गया। यहां छत्तीसगढ़ से पहली बार किसी ने प्रशिक्षण दिया।
इस कार्यशाला में आमंत्रित मनोहर गौशाला के ट्रस्ट्री डॉ. अखिल जैन (पदम डाकलिया) ने पहले दिन मंगलवार को 15 मिनट का गौ आधारित कृषि पर व्याख्यान दिया। कार्यक्रम में डॉ. जैन ने कहा कि गौ आधारित कृषि ही हमारा आने वाला कल और आने वाला पल है, जिसे सुरक्षित करने की जरूतर है। उन्होंने देशभर से आए सभी गौ प्रेमियों और किसानों से खेती में गोबर एवं गौ मूत्र का सर्वोपरि उपयोग करने की अपील की, ताकि धरती को जहरमुक्त किया जा सके। उन्होंने वहां मौजूद लोगो से इस अभियान में जुड़कर इसे सार्थक करने करने का सहयोग मांगा।
कार्यक्रम में मौजूद उत्तरप्रदेश गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष श्याम बिहारी गुप्त ने डॉ. जैन को उत्तरप्रदेश आकर वहां के गौ पालकों को प्रशिक्षण देने का निमंत्रण दिया, जिसे उन्होंने स्वीकार किया। कार्यक्रम में अखिल जैन का सम्मान किया गया। इस अवसर पर महाराष्ट्र गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष शेखर मूंदड़ा, एमगिरी के निदेशक डॉ. आशुतोष मुरकुटे, जीव जंतु कल्याण बोर्ड के निदेशक सुनील मानसिंह सहित देश के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक, गौशाला के प्रतिनिधि मौजूद रहे।
1934 में हुई थी एमगिरी की स्थापना
बता दें कि महात्मा गांधी ने अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ की स्थापना 14 दिसंबर 1934 को महिला आश्रम, वर्धा के ऊपरी कक्ष में की थी। बापू की इच्छानुसार इस आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए कांग्रेस द्वारा “स्थायित्व की अर्थव्यवस्था” के सिद्धांत के लिए प्रख्यात डॉ. जोसेफ कार्नेलियस कुमारप्पा का चयन किया गया। इस संगठन के प्रथम अध्यक्ष कृष्णदास जाजू बने। अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ का एक बोर्ड ( संचालक मंडल) था, जिसमें डॉ. सीवी रमण एवं डॉ. जेसी बोस जैसे विख्यात वैज्ञानिक तथा समाज एवं उद्योग से जुड़ी हुई जानी-मानी हस्तियाँ, जिनमें रवींद्रनाथ टैगोर, जीडी बिरला, एमए अंसारी और सतीशचंद्र दासगुप्ता के साथ अन्य 18 सलाहकार थे। सन् 1936 में गांधीजी ने ‘वर्धा हाट’ का भी शुभारंभ किया ताकि ग्रामोद्योगों उत्पादों के उत्पादकों को बाज़ार मिल सके। गांधीजी के देहावसान के पश्चात 1949 से 1951 तक इस संस्था के अध्यक्ष डॉ. कुमारप्पा एवं सचिव डॉ. जी. रामचंद्रन रहे।
No comments:
Post a Comment